नवलपरासी / कैलाश महतौ
कोरोना भाइरस (कोभिड-१९) से हाल बेहाल विश्व के स्वास्थ्य जगत ने वैश्विक राजनीति समेत को अपने जंजीरों में जकडकर सडक पर घसीटने का साहस दिखाने लगा है । कुछ औषधि वैज्ञानिकों को माने तो अन्दाज यही लगाय जा सकता है कि कोभड-१९ ने भी प्रकृति पर हुए मानव आतंक का बदला आतंक से ही लेने का फैसला कर चुका है, भले ही यह जानते हुए कि आज न कल्ह उसे भी विगत के अन्य महामारियों के तरह दम तोडना पडेगा ।
स्वास्थ्य तथा औषधी विज्ञान ने यह पता लगाया है कि मानव सभ्यता का नामो निशानतक मिटा सकने बाले कुल छ: लाख भाइरसों के आगमन का रास्ता साफ दिख रहा है । मानव व्यवहार में औचित्यपूर्ण सुधार और प्रकृति के साथ असमान्य सम्बन्धों में सकारात्मक तदात्म्यता अगर नहीं स्थापित हुआ तो नि:सन्देह आने बाले कल्ह में इस सारे कायनात में आजके खतरनाक भाइरसों (जीवाणु) का साम्राज्य होगा । इसका खुल्ला संकेत विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी यह चेतावनी देते हुए दे दिया है कि दुनियाँ के सारी सरकारें प्रकृति से हो रहे अनावश्यक छेडखानी और वन्यजन्तु के मौतीय दोहन को यथासम्भव जल्द ही रोकें ।

एक तरफ सारा विश्व कोभिड-१९ से जद्दो जिहाद करने में अपनी सारी सुझबुझ और तकनिकी ताकत लगा रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ धर्मान्ध तपकों के द्वारा कोरोना नाम के इस महामारी को एक शक्तिशाली हथियार बनाकर मानव जीवन को ही चुनौती देने के उन्माद को पाला जा रहा है तो तीसरी ओर गरीबी और भूखमरी के बीच विभत्स जंग छिडी हुई है । वैसे ही एक ओर किसी का विश्व का शक्तिशालीपन का ताज बचाने की तो अगले तरफ किसी को विश्व का शक्तिशालीपन का पाग छिनकर पहनने का भूत सवार है । अल्प विकसित और विकासोन्मुख राष्ट्रों के राजनीति में इस तबाही के मन्जर में भी भ्रष्टाचार पराकाष्ठा पर जाकर देश के माथे पर नंगा नाच करता नजर आ रहा है तो वहीं कुछ राजनीति के दुश्मन राजनीनिज्ञ अपनी रोटी सेकने के फिराक में लच्छेदार और जन लुभावन दलिलें पेश करने में मशगुल हैं । प्रायः होता यह है कि नये नये साधु अपने माथे पर बहुत ज्यादा तिलक व भभूत और नयी नयी दुलहन बहुत ज्यादा श्रृंगार पटार करती रहती हैं । राजनीतिक वृत्तों में भी कुछ एेसा ही दिख रहा है । एक तरफ राज्य और उसका सम्पूर्ण सरकारी निकाय इस मुसिबत के घडी में भी भ्रष्टाचार और राज्य का दोहन करने से परहेज नहीं आ रहे हैं, वहीं लकडाउन को सहयोग करने बाले विभिन्न वर्ग, क्षेत्र और समुदाय के लोग संघीय, प्रदेश और स्थानीय सरकारों से अपहेलित जीवन जीने को बाध्य हैं । गरीब, निमुखा, कमजोर, दलित और दैनिक श्रम से गुजारा करने बाले वर्ग, तप्के और समुदाय इस महामारी काल में भी राहत से कोशों दूर हैं । राहत कोष से उन्हें उपलब्ध कराये जाने बाले खाद्य सामग्री भी जानवरों के दाना से भी बद्तर श्रेणी के दिए जा रहे हैं जिसे खाने से इस संकट के घडी में उनका स्वास्थ्य पर जोखिम की त्रास मौजुद है ।
जिस तरह का माहौल व्याप्त है, उससे एक बात तो पक्का है कि अमेरिका लगायत यूरोप के कुछ मुल्कों के खुल्ला बाजार नीति का तहस नहस होना तय है । सामाजिक और व्यापारिक अर्थ व्यवस्था को भी भारी आघात पहुँचना भी निश्चित प्रायः है । इस अवस्था में विश्व बाजार में जो बेरोजगारी बढेगी, दैनिक उपभोग्य वस्तुओं का अभाव कालाबजारी बढेंगे, उससे समाज में आर्थिक आतंक बढने की संभावना काफी मजबूत दिखाई दे रही है । नेपाल के सन्दर्भ में यह विकराल और भयावह रुप धारण कर सकता है जब बेरोजगारी और सुरक्षा के कारणों से विश्व के अनेक देशों से श्रमिक नेपाली अपने वतन आकर बेरोजगार होंगे । सरकार की वैसी कोई तैयारी नहीं है । जो भी तैयारी हो रही है, नेता और नेतृत्व देश को लूटने की तैयारी में हैं । रोजगार की कोई ग्यारेन्टी नही है । उद्योग धन्दों की व्यवस्था नहीं है । उस अवस्था में हुनर प्राप्त बेरोजगार यूवा या तो राज्य से रोजगार मागेंगे या उपद्रवी बनेंगे ।
कोभिड-१९ सिर्फ महामारी ही नहीं, अपितु विश्व शक्ति की मापन यन्त्र भी है । जो समाज और राष्ट्र इसे समझने और सुलझाने में सफल होगा, वह हावा के गति में अपने देश और जनता को आगे ले जायेगा और जो इस कार्य में तकनिकी रुप से चुकेगा, वह या तो विलीन हो जायेगा या आपाहिज के भाँति दूसरों के दया के सहारे जियेगा ।
कोभिड-१९ ने तो विश्व का होश हवास को ठिकाना लगा ही दिया है, मगर सरकारों के रबैयों और तैयारियों से लोग इस कदर गुमसुमाहट में होने बाली एक अकल्पनीय विष्फोट और दुर्घटना के आशंका से भी त्रसित हैं । देशों की आर्थिक अवस्था में अकल्पनीय गिरावट तो पक्का है । उसके साथ महीनों से घर में पडे रहने से लोगों में शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक थकान और तनाव इस कदर निर्माण हो रहे हैं कि वह जब विष्फोट का रुप लेगा तो स्थिति भयावह हो सकता है जो कोरोना से भी खतरनाक सावित हो सकता है । इसी बीच कुछ धर्मान्धों द्वारा मानव अस्तित्व विरोधी जो कार्य किये जा रहे हैं, उससे जातीय, धार्मिक, साम्प्रदायिक दंगों के साथ कई देशों में गृह युद्धतक की माहोल बनने का संभावना प्रवल है ।
