कृषि प्रधान देश में किसानों के प्रति लापरवाह नजर अा रही स्थानीय सरकार

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१६ नवम्बर (पुस १ गते),

खोन्टुस/नवलपरासी ।

नवलपरासी के सरावल गाउपालिका में रहे पेटबनिया सिचाई नहर का पानी स्थानिय ईटा भठ्ठे द्वारा रोक लेने से स्थानीय किसान चिन्तित हो गए है । सरावल गाउपालिका के वार्ड नम्बर २ और ३ के किसान उसी नहर से सिचाई करते थे जिसका पानी भठ्ठेवालों ने रोक लिया है ।
भुमिगत सिचाई का स्रोत भी न रहे सिचाई आयोजना टूट जाने के सालो बाद भी सरकारी निकाय के लापरवाही से अब तक नही बना है । नहर के पास ही रहे हरि ईटा भठ्ठा पानी को पुरी तरह रोककर ईटा बनाने के औद्योगिक प्रयोजन में इस्तमाल कर रहा है । जिसके वजह से वर्तमान में सैकडो किसान चिन्तित होने की जानकारी स्थानिय हरिलाल यादव ने बताया है । गावपालिका के जनप्रतिनिधि भी उद्योगपतियों का पक्ष ले रहे हैं । ऐसे में भला गरीब किसान की पीडा कौन समझेगा ? अपना दुखडा सुनाते हुए किसानों ने कहा, किसान जैसे तैसे स्थानीय स्तर से बांध बनाकर नहर का पानी सरसो और गेहूं के सिचाई के लिए प्रयोग करते थे । पर, अब वह पानी उद्योगपतियों के कब्जे में चला गया है । जिससे किसानों को अपने फसल से हाथ धोने की नौबत आ चुकी है ।
खेती योग्य जमीन पर भुमिकर लगाकर सम्पती में गणना करके एकिकृत सम्पती कर लगाकर उन्ही किसान के कर से कर्मचारी को तलब दिया जाता है और जनप्रतिनिधियों को पारिश्रमिक सेवा सुविधा मिलता है । पर, किसानों के परेशानी को समझने के लिए कोई नजर नही आ रहा है ? किसान के आय का जो जरिया था, उस नहर के मरम्मत सम्भार की बात तो दूर उससे आ रहे पानी को भी रोक दिया गया है । जिससे किसान की फसल सिचाई बगैर सूख रही है और सम्बन्धित निकाय, जनप्रतिनिधी भारी पलडा देखकर उधर ही लूढक लिए हैं । नेपाल एक कृषि प्रधान देश होते हुए भी किसान की समस्या को समझनेवाला कोई नजर नही आ रहा है ।
उद्योग द्वारा सारा पानी रोकेजाने का दृश्य दिखाते हुए, एक किसान ने सवाल किया है कि, अब वह किसके पास अपनी फरियाद लेकर जाए ? भठ्ठे को पानी न रोकने के लिए कोई कहनेवाला नजर नही आ रहा है । सरकार नही सुन रही, गावपालिका के जनप्रतिनिधी सब बिके हुए नजर आ रहे हैं ।
उद्योग से निकलते धूए और प्रदुषण तो दूर नहर की जमीन अतिक्रमण करके ईटा भठ्ठा बनाकर, नहर की पानी रोककर पैसा कमाकर, कमाई का अंश नेता और जनप्रतिनिधी को देते हैं तो भला ऐसे में कौन उनके खिलाफ बोलेगा ? हम किसानों की पीडा समझने और हमे भूखमरी के कगार से बचाने के लिए कोई नही दिखाई दे रहा है । कहते हुए एक किसान ने रुधिर स्वर में अपना दुखडा सुनाया है ।
पेटबनिया नहर से साविक मनरी और सरावल गाविस के करिब ५ सौ कृषक सिचाई करते आ रहे थे । नहर को टूटे दशक बीत गए पर इस पर कोई लगानी नही हुयी । अब नहर में बहनेवाली पानीपर उद्योगपतियों का आधिपत्य जम चुका है ।
कर्मचारी तो कर्मचारी हैं पर किसानों के मत से बिजयी होकर आए जनप्रतिनिधी आज स्वयं किसानों के पीडा को अन्देखा कर दे रहे हैं । चुनाव के समय कितने वादे किए सब तो दूर जो समस्या जनप्रतिनिधी के जरा सी पहल मात्र से समाधान हो सकती है । उसके प्रति जनप्रतिनिधी की ऐसी उदासीनता कही न कही से जनप्रतिनिधी पर एक प्रश्न चिन्ह अंकित करती है ।
हालांकि इस मामले में जब सरावल गावपालिका के अध्यक्ष राधेश्याम चौधरी से बात की गयी तो उन्होने इस मामले से बिल्कुल अनभिज्ञ होने की बात कही । साथ ही उन्होने बताया कि इस नहर के सिचाई आयोजना के मरम्मत की मांग भी नही हुयी थी, जिस वजह से बजेट बिनियोजन नही हुआ है । किसान द्वारा पानी खोलने का मांग लेकर आने के बाद उसपर कुछ कहे तथा किए जाने की बात अध्यक्ष चौधरी ने कही है ।
गाउपालिका का मुख्य नारा किसान तथा कृषि विकास का होने के बावजूद भी ब्यवहार में बजेट यातायात तथा अन्य पुर्वाधार पर दिखायी दे रहा है । जिसके किसानो को केवल नारे से ही सन्तुष्ट करने का प्रयास किए जा रहा है, ऐसा प्रतीत होता है । स्थानीय किसान गावपालिका को किसान प्रति गम्भीर न होने का आरोप लगाया है ।

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