नेपाल भारत सम्बन्ध पर प्रहार, भारत यात्रा हुआ कठिन, अपने ही नागरिक को अपराधी बना दिया : दीपेन्द्र चौबे,

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नेपाल अपने नागरिकों को अपराधी के तौर पर दुनिया में पेश करना चाहता है क्या?

दीपेन्द्र चौबे,

नेपाल के संविधान की धारा 17 और उपधारा 5 सम्पूर्ण नेपालियों को स्वतंत्र रूप से विश्व में
कहीं भी आने जाने का अधिकार प्रदान करता है। साथ ही भारत-नेपाल मैत्रीपूर्ण संधि की
धारा 7, 11 जुलाई 1950 से भारतीय और नेपाली नागरिकों को बिना पासपोर्ट और वीजा
नेपाल और भारत में कहीं भी और किसी भी माध्यम से आने-जाने का अधिकार प्रदान करता
है। यह संधि सिर्फ भारत और नेपाल में आने-जाने का अधिकार ही प्रदान नहीं करता है
बल्कि स्वतंत्र रूप से व्यापार और रोजगार करने का और असीमित समय तक रहने का भी
अधिकार प्रदान करता है। इस धारा की चर्चा भी अभी हाल ही में भारतीय गृहमंत्री अमित
शाह ने भारत में नेपाली नागरिकों के वैधानिक स्थिति के बारे में बताते हुए भारतीय संसद
में भी की थी। लेकिन इन सभी अधिकारों को दरकिनार करते हुए भारत के दिल्ली स्थित
नेपाली दूतावास ने 11 फरवरी 2020 को एक सूचना प्रकाशित की है कि अगर कोई भी
नेपाली नागरिक जमीनी रास्ते से भारत में प्रवेश करता है तो उसको वायु मार्ग से अपने देश
में जाने की अनुमति नहीं होगी। नेपाली दूतावास सिर्फ यहीं तक नहीं रुका उसने आगे यह भी
निर्देश दिया हैं कि मध्य-पूर्व देश में जैसे ओमान, बहरीन, सऊदी अरब, यू.ए.ई, क़तर,
लेबनान जैसे देशों में जो लोग रोजगार करने जाते हैं अगर उनके पास श्रम स्वीकृति है तो
दूतवास उनको एनओसी जारी करेगा तभी वे लोग भारत स्थित किसी भी विमानस्थल का
प्रयोग कर सकता हैं। लेकिन इस सूचना में यह कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है कि अगर
कोई नेपाली भारतीय विमान स्थल के माध्यम से मध्य-पूर्व के इन देशों में पर्यटन के लिए
जाना चाहता है तो उसे क्या दस्तावेज दिखाने होंगे और क्या करना होगा ?
हद तो तब हो गई जब इस सूचना के तीसरी और आखिरी पंक्ति में यह कहा गया है कि इन
देशों के अलावा अगर कोई नेपाली नागरिक किसी भी अन्य देश में जाना चाहता है और

उसका यह अप्रवासन चाहे व्यापार, रोजगार, पर्यटन के लिए है या अपने संबंधियों से
मिलने के लिए है तो नेपालियों को नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित है अपने एक
मात्र अंतरराष्ट्रीय विमान स्थल त्रिभुवन, जहाँ से अंतरराष्ट्रिय विमानों का परिचालन काफी
कम है, का ही प्रयोग करना होगा। इससे स्पष्ट होता है कि भारत के किसी भी विमान स्थल
का प्रयोग करना मना है। साथ ही इसके अतिरिक्त एक अन्य शर्त यह भी रखी गई है कि यदि
कोई नेपाली भारत में अपने खुले सीमा से प्रवेश करता है और अपने पासपोर्ट पर डिपार्चर
मुहर ले कर आता है तो इसके आधार पर आप को भारतीय विमान स्थल प्रयोग करने की
अनुमति होगी।लेकिन यहां एक चीज ध्यातव्य है कि भारत अपने नागरिकों के लिए नेपाल में
जाने और आने की जो पूर्व शर्ते है उसे ही लागू किए हुए है।
इस प्रकार की सभी सूचनाएं कई महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को उठाती है जिनका यहां जिक्र करना
आवश्यक है । पहली बात यह कि 11 फरवरी को प्रकाशित दूतावास के सूचना के बारे में
नेपाल के विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय के वेबसाइट पर जब खोजने का प्रयास किया
गया तो इस सूचना के बारे में कोई भी जानकारी कहीं भी प्राप्त नहीं हुई है। अगर किसी
कोने-खोपचे में इस सूचना को रखा गया है तो यह नेपाल सरकार को ही मालूम होगा ।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि नेपाल की लोकतांत्रिक सरकार अपने नागरिकों से उसके मूलभूत
अधिकार को कैसे छीन सकती है, वह भी सिर्फ एक सूचना प्रकाशन के द्वारा। जिसकी
जानकारी न संसद में है, न उसकी चर्चा की गई है और ना ही उनके सरकारी वेबसाइट पर
उपलब्ध है। संविधान द्वारा प्राप्त अधिकारों को यह सरकार किस प्रकार उलंघन कर रही है ।
उसका जीता-जागता उदाहरण यह सूचना है। सूचना प्रकाशन के पीछे जो यह तर्क दिया जा
रहा है, वह भी समझ से परे है। तर्क यह है कि मानव तस्करी को रोकने के लिए यह कदम
उठाया गया है। इस तर्क पर सवाल यह उठाना लाजमी होगा कि अभी तक नेपाल सरकार
कितने मानव तस्करों को गिरफ्तार किया है और उन पर करवाई किया है। सरकार को
इसकी भी सूचना देनी चाहिए। यदि मान भी लें कि कुछ लोग मानव तस्करी के इस अपराध
को कर रहें हैं या उसमें शामिल है तो क्या कुछ लोगों के कारण देश के सम्पूर्ण नागरिकों को कहीं आने जाने से रोक देना उचित है । इसके लिए यह तर्क उचित है कि मानव तस्करी को
रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। इस कदम को देखते हुए यह कहावत चरितार्थ हो ।
रही है कि कौवा कान ले गया और हम कान को देखने के बजाए कौवे के पीछे भागने लगते
हैं। इस प्रकार का कदम पूरी तरीके से आमनवीय है और असंवैधानिक भी है। इस तरह के
कदम का सभ्य समाज में कोई भी जगह नहीं होता है। नेपाल-भारत की खुली सीमा लगभग
1880 किलोमीटर है जो भारत के 6 राज्यों से संपर्क स्थापित करती है। इतनी लम्बी खुली
सीमा पर अप्रवासनन के कुल 7 या 8 कार्यालय हैं। वह भी सही समय से कार्य नहीं करते हैं
तो क्या इस दिशा में डिपार्चर स्टंप लगवाना आसान कार्य हो सकता है ?
भारत और नेपाल दो देश नहीं हैं बल्कि दो जिस्म एक जान हैं। यह उदहारण भी दुनिया में
बहुत कम है। इसकी वजह यह है कि इन दोनों देशों में बेटी और रोटी का संबंध है। अर्थात
इन दोनों देशों के बीच में परस्पर पारिवारिक सबंध स्थापित हैं। सीमा क्षेत्र में देश का सबसे
अधिक व्यापारिक कारोबार होता है और व्यापार का संबंध परिवहन पर आधारित है। इस
कारण नेपाल सरकार के इस निर्यण से सीमा क्षेत्र में आर्थिक स्तर पर भी मुश्किलें पैदा
होंगी। भारत में रह रहें नेपाल के छात्र-छात्राओं, व्यवसायियों, कामगारों और स्थायी तौर
पर रहने वाले लोग इससे ज्यादा प्रभावित होंगे। नेपाल सरकार की यह मूर्खतापूर्ण निर्यण
देश हित में कतई नहीं होनी चाहिए। वर्ष 2017 में भारत सरकार के गृह राज्य मंत्री किरण
रिजीजू ने राज्यसभा में एक लिखित सवाल में यह जवाब दिया था कि नेपाल के खुले सीमा
पर लगाए गए एसएसबी के जवान को यह अधिकार होगा कि किसी सूचना के आधार पर
या उसके संबंधित अंग से ख़ुफ़िया सूचना मिलने पर किसी व्यक्ति की जांच या पूंछताछ की
जा सकती है। सामान्य तौर पर भी सीमा पर आने-जाने वाले लोगों की जांच रूटीन वर्क में
होती रहती है। यह कार्य नेपाल सरकार की भी जांच एजेंसिया करती रहती हैं। अगर कोई
अपराधी या कानून विरुद्ध कार्य करने वाला व्यक्ति होता है तो उसे सीमा पर ही पकड़ा
जाना चाहिए। लेकिन यहां नेपाल सरकार अपने जांच एजेंसियों की नाकामी को छुपाने के
लिए नेपाली नागरिकों के आने-जाने को ही प्रतिबंधित कर दिया है और यह नेपाली
नागरिकों को अपराधियों जैसी स्थापित कर रहा है।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अप्रवासन विभाग के वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के
अनुसार नेपाली नगरिकों को भारतीय विमान स्थल प्रयोग पर रोक नहीं है। सिर्फ मध्य-पूर्व
के कुछ देशों में जाने के लिए नेपाली दूतावास से एनओसी की ज़रूरत बताई गई है। नेपाली
दूतावास के इस करवाई से भारत में रह रहे नेपाली नागरिकों को या नेपाल से आए
नेपालियों को भारतीय विमान स्थल उपयोग करने में बहुत ज्यादा परेशानियों का सामना
करना पड़ रहा है। भारत के अप्रवासन विभाग के अधिकारीयों द्वारा अव्यवहारिक भाषा
और उनके दूरव्यव्हार का सामना करना पड़ रहा है। इस तरह के व्यव्हार के पीछे भारतीय
अप्रवासन विभाग के अधिकारीयों का तर्क होता है कि नेपाल सरकार का आदेश है कि किसी
भी नेपाली नागरिक को भारतीय विमान स्थल उपयोग करने न दिया जाए।
इस स्थिति से लगता है कि जैसे पूरे नेपाली नागरिक अपराधी हैं और नेपाल सरकार अपने
नागरिकों को वैश्विक स्तर पर अपराधी घोषित करने का प्रयास कर रही है। नेपाल सरकार
को यह निर्यण तुरंत वापस लेना चाहिए और भारतीय गृह मंत्रालय को यह आग्रह करना
चाहिए कि नेपाली नागरिकों को विमान स्थल में आने-जाने में सहयोग करे और सम्मान के
साथ नेपाली नागरिकों के साथ व्यव्हार करे। यदि पिछले दो सालों को देखें और मीडिया में
आए समाचारों को ध्यान में रखा जाए तो बहुत से नेपाली नागरिकों को भारतीय विमान
स्थल से वापस कर दिया गया है। वह भी बस यह कह कर कि नेपाल सरकार का आदेश है
कि उनकी अनुमति के बिना नेपाली नागरिकों को नहीं जाने दिया जाएगा। यात्रियों द्वारा
इस संबंध में पूछने पर अप्रवासन के अधिकारीयों द्वारा गिरफ्तार करने से लेकर कालीसूची
में डालने तक की धमकियाँ दी जाने लगती हैं। ऐसी स्थिति में उस सामान्य यात्री की
मानसिक स्थिति क्या होती होगी वह कल्पना से परे है। उसका आर्थिक दोहन कितना हुआ
होगा, यह भी समझने की ज़रूरत है।

इस प्रकार के निर्णय कर के क्या वाकई नेपाल सरकार नेपाल और भारत की बेटी और
रोटी के संबंध को ख़त्म करने पर आमादा है। सवाल यह भी उठता है कि इस प्रकार के
निर्यण लेने से पहले नेपाल सरकार ने किन-किन भारत-नेपाल सबंधों के सरोकारों से बात
की। क्या इस निर्यण की जानकारी विपक्षीय पार्टियों को थी या प्रदेश सभा की राय ली गई
थी। इसका उल्लेख भी कहीं नहीं दिखता है। ऐसे स्थिति में नेपाली नागरिकों को, बौद्धिक
समाज को, सामाजिक कार्यकर्ताओं को और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इस निर्यण का
विरोध करना चाहिए। यह वामपंथी सरकार नेपाल और भारत की जनता के बीच वैमनस्य
का जहर जिस प्रकार से धीमें-धीमें भर रही है वह शोभनीय नहीं है। किसी भी नेपाली
नागरिक के स्वतंत्र आवागमन पर पावंदी लगाना और पूर्ण या आंशिक रूप से हस्तक्षेप करना
उसके मूलाधिकार का ही नहीं है बल्कि उसके मानवा अधिकार का भी उल्लंघन है

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