जोधपुर/ राजस्थान/भारत 24 अक्टूबर 20
( राजस्थान के जैलसमेर में बॉर्डर पर स्थित तनोट माता का मंदिर।)
जोधपुर। जैसलमेर से थार रेगिस्तान में 120 किमी. दूर सीमा के पास स्थित है तनोट माता का सिद्ध मंदिर। जैसलमेर में भारत पाक सीमा पर बने तनोट माता के मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965 और 1971 की लड़ाई) की कई अजीबोगरीब यादें जुडी हुई हैं। यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के फौजियों के लिये भी आस्था का केन्द्र रहा है।
राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम मानी जाती है। यहां तक मान्यता है कि माता ने सैनिकों की मदद की और पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा। इस घटना की याद में तनोट माता मंदिर के संग्रहालय में आज भी पाकिस्तान द्वारा दागे गये जीवित बम रखे हुए हैं।
1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध के 50 साल पूरे होने परपाक सीमा से सटे एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहा है जिस पर दुश्मन द्वारा दागे गए करीब 3000 तोप के गोले भी मंदिर को रत्ती भर भी नुकसान नहीं पहुंचा पाए थे। 3000 पाकिस्तानी तोप के गोले भी रहे बेअसर17 से 19 नवंबर 1965 को शत्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया। दुश्मन के तोपखाने जबर्दस्त आग उगलते रहे। तनोट की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी।
1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध के 50 साल पूरे होने परपाक सीमा से सटे एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहा है जिस पर दुश्मन द्वारा दागे गए करीब 3000 तोप के गोले भी मंदिर को रत्ती भर भी नुकसान नहीं पहुंचा पाए थे। 3000 पाकिस्तानी तोप के गोले भी रहे बेअसर17 से 19 नवंबर 1965 को शत्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया। दुश्मन के तोपखाने जबर्दस्त आग उगलते रहे। तनोट की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी।
1965 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं।
कब्जा करने उद्देश्य से पाकिस्तान ने भारत के इस हिस्से पर जबर्दस्त हमले किए लेकिन उन्हे कामयाबी नहीं मिली। अब तक गुमनाम रहा यह स्थान इसके बाद प्रसिद्ध हो गया।
विश्वास किया जाता है कि तनोट माता के प्रताप से ऐसा हुआ। पाक सेना 4 किमी. अंदर तक हमारी सीमा में घुस आई थी। बाद में जब भारतीय सेना हावी हो गई, उन्होंने जवाबी आक्रमण किया जिससे पाकिस्तानी सेना को भयंकर नुकसान हुआ और वे पीछे लौट गयी।
माता का मंदिर जो अब तक सुरक्षा बलों का कवच बना रहा, शान्ति होने पर सुरक्षा बल इसका कवच बन गये। मंदिर को बीएसएफ ने अपने नियंत्रण में ले लिया। आज यहां का सारा प्रबन्ध सीमा सुरक्षा बल के हाथों में है। मंदिर के अन्दर ही एक संग्रहालय है जिसमें वे गोले भी रखे हुए हैं। पुजारी भी सैनिक ही है ।
आज इस मंदिर की ख्याति इतनी ज्यादा हो चुकी है कि लोंगोवाल या जैसलमेर सीमा की किसी भी भारतीय पोस्ट पर तैनात सैनिक और अफसर मां के इस मंदिर में माथा टेकने जरूर आते है ।
सुबह-शाम आरती होती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक रक्षक तैनात रहता है, लेकिन प्रवेश करने से किसी को रोका नहीं जाता। फोटो खींचने पर भी कोई पाबंदी नहीं। इस मंदिर की ख्याति को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ की पटकथा में भी शामिल किया गया था। दरअसल, यह फिल्म ही 1965 युद्ध में लोंगोवाल पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना के हमले पर बनी थी ।