फागुन २६ गते,
“प्यारे बाबा, न्यारे बाबा”
बाबा प्यारे बाबा, बाबा प्यारे बाबा,
तुम थे न्यारे बाबा, तुम थे न्यारे बाबा ।
हमको छोडकर चले गए, तुम कैसे बाबा ?
हा ! तुम कैसे बाबा ?
अब सुनिए कैसे थे हमारे बाबा,
हजारो में एक थे हमारे बाबा ।
अपने ही बातो पर अडे रहते थे वो,
किसी आँधी और तुफान से न डरते थे वो ।।
खुद तो चले गए,
हमारे मनको हमारे घरको सूना करके गए ।
कुतुक कठोर छ तेरो मन रे बाबा,
मेरे से बोले बिना चले गए ।।
अपनी दुःख व पीडा खुद ही तक रखते थे,
किसी से न कहते थे हमारे बाबा ।
कुतुक कठोर छ, तेरो मन रे बाबा,
मेरे से बोले बिना चले गए तुम ।।
एक बार गर्मी की छुट्टी मे आया था तेरे पास,
मुझे गर्मी न लगे इसलिए नहलाया और पंखा किया था तूने ।
आज भी वो पल व वो दिन है मुझे याद,
और वही अन्तिम पल था मेरा तेरे साथ ।।
किस शिक्षक से कम थे आप ?
किस चिकित्सक से कम थे आप ?
किस वक्ता से कम थे आप ?
किस कृषक से कम थे आप ?
पुरी जीवन संघर्ष ही करते रहे आप,
खुद तो चले गए, मेरे आँखो को नम करके बाबा ।
कुतुक कठोर छ तेरो मन रे बाबा,
मेरे से बोले बिना चले गए ।।
(आपके चरणो में करता हूँ अर्पित लाखों पुष्पाञ्जली हे मेरे बाबा आपको सतसत नमन एवं हमारे सपरिवार के तरफ से हार्दिक श्रद्धाञ्जली । अलविदा बाबा ! अलबिदा !!)
हिमांशु मिश्र
कक्षा : १२