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दरअसल चीन के वुहान से शुरू हुए इस कोरोना संक्रमण को लेकर अलग अलग देश अलग अलग दावे कर रहे हैं। जहाँ एक ओर रूस, अरब, सीरिया, जैसे देश चीन में फैले कोरोना वायरस के लिए अमेरिका और इजरायल को दोष दे रहे हैं वही अमेरिका खुद चीन को ही कोरोना का जनक बता रहा है। मज़े की बात यह है कि सबूत किसी के पास नही हैं लेकिन अपने अपने तर्क सभी के पास हैं। रूस का कहना है कि कोरोना वायरस अमेरिका द्वारा उत्पन्न एक जैविक हथियार है जिसे उसने चीन की अर्थव्यवस्था चौपट करने के लिए उसके खिलाफ इस्तेमाल किया है। इससे पहले रूस 1980 के शीत युद्ध के दौर में एच आई वी के संक्रमण के लिए भी अमेरिका को जिम्मेदार बता चुका है। जबकि अरबी मीडिया का कहना है कि अमेरिका और इजरायल ने चीन के खिलाफ मनोवैज्ञानिक और आर्थिक युद्ध के उद्देश्य से इस जैविक हथियार का प्रयोग किया है । अपने इस कथन के पक्ष में वो विभिन्न तर्क भी प्रस्तुत करत है। सऊदी अरब समाचार पत्र अलवतन लिखता है कि मिस्र की ओर से इस घोषणा के बाद कि कुछ दिनों बाद वो चिकन उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा और निर्यात करने में भी सक्षम हो जाएगा इसलिए अब वह अमेरिका और फ्रांस से चिकन आयात नहीं करेगा, अचानक बर्ड फ्लू फैल जाता है और मिस्र का चिकन उद्योग तबाह हो जाता है ।
इसी तरह जब चीन ने 2003 में घोषणा की कि उसके पास दुनिया का सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भंडार है तो उसकी इस घोषणा के बाद चीन में अचानक सार्स फैल जाता है और चीनी विदेशीमुद्रा भंडार विदेशों से दवाएँ खरीद कर खत्म हो जाता है। इसी प्रकार सीरिया का कहना है कि कोरोना वायरस का इस्तेमाल अमेरिका ने चीन के खिलाफ उसकी अर्थव्यवस्था खत्म करने के लिए किया है। सीरिया के अनुसार इससे पहले भी अमेरिका एबोला, जीका, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, एंथ्रेक्स, मैड काऊ, जैसे जैविक हथियारों का प्रयोग अन्य देशों पर दबाव डालने के लिए कर चुका है। जैसे कि पहले भी कहा जा चुका है,जो लोग कोरोना वायरस को एक जैविक हथियार मानते हैं उनके पास इस बात का भी तर्क है कि आखिर वुहान को हीक्यों चुना गया। मिस्र की वेबसाइट वेतोगन के अनुसार वुहान चीन का आठवां सबसे बड़ा औद्योगिक शहर है। आठवें स्थान पर होने के कारण चीन के अन्य बड़े शहरों की तरह इस शहर में स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दियाजाता इसलिए इसे संक्रमण फैलाने के लिए चुना गया ।
हम नहीं जानते कि वो कहाँ से फैला लेकिन हमें यह जानना जरूरी है कि यह कहाँ से और कैसे फैला क्योंकि वुहान के पशु बाजार के कुछ ही दूरी पर चीन का वो अनुसंधान केंद्र भी है जहां मानव संक्रमण पर अनुसंधान होते हैं। उन्होंने अपने इस बयान के समर्थन में कहा किहालांकि उनके पास इस बात के सबूत नहीं है कि कोरोना वायरस चीन द्वारा बनाया गया जैविक हथियार है लेकिन चूंकि चीन का शुरू से ही कपट और बेईमानी का आचरण रहा है हमें चीन से साक्ष्य मांगने चाहिए। यहाँ यह जानना भी रोचक होगा कि जब अमेरिका में चीनी राजदूत से टॉम कॉटन के बयान पर प्रतिक्रिया मांगी गई तो उनका कहना था कि चीन में लोगों का मानना है कि कोरोना अमेरिकाका जैविक हथियार है। वैसे पूरी दुनिय जानती हैं कि खबरों पर चीन की कितनी सेंसरशिप और चीन से बाहर पहुँचने वाली सूचनाओं पर उसकी कितनी पकड़ है। अतः काफी हद तक चीन के इस संदेहास्पद आचरण का इतिहास भी चीन के द्वारा ही किए जाने वाले किसी षड्यंत्र का उसी पर उल्टा पड़ जाने की बात को बल देता है ।
कहा जा रहा है कि चीन में कोरोना संक्रमण फैलने के कुछ सप्ताह के भीतर हीचीन के इंटरनेट पर इसे अमेरिकी षड्यंत्र बताया जाने लगा था। जानकारों का कहना है कि चीन द्वारा इस प्रकार का प्रोपोगेंडा जानकर फैलाया गया ताकि जब भविष्य में उस पर उसकी लैबोरेटरी से ही वायरस के फैलने की बात सामने आए तोयह उसकी काट बन सके। वैसे कोरोना वायरस खुद चीन की लैबोरेटरी से फैला है इस बात को बल इसलिए भी मिलता है कि जब चीन के आठ डॉक्टरों की टीम ने एक नए और खतरनाक वायरस के फैलने को लेकर सरकार और लोगों को चेताने की कोशिश की थी तो चीनी सरकार द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया गया। कुछ समय बाद इनमें से एक डॉक्टर की इसी संक्रमण की चपेट में आकर मृत्यु हो जाने की खबर भी आई। इतना ही नहीं जब 12 दिसंबर को चीन में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया था तो चीन ने उसे दबाने की कोशिश की। चीन की सरकारी साउथ चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के मुताबिक संभव है हुबेई प्रांत में सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल ने रोग फैलाने वाली इस बीमारी के वायरस को जन्म दिया हो। स्कॉलर बोताओ शाओ और ली शाओ का दावा है कि इस लैब में ऐसे जानवरों को रखा गया जिनसे बीमारियां फैल सकती हैं, इनमें 605 चमगादड़ भी शामिल थे। उनके मुताबिक हो सकता है कि कोरोना वायरस की शुरुआत यहीं से हुई हो ।
इनके रिसर्च पेपर में यह भी कहा गया कि कोरोना वायरस के लिए जिम्मेदार चमगादड़ों ने एकबार एक रिसर्चर पर हमला कर दिया और चमगादड़ का खून उसकी त्वचा में मिल गया। इन बातों से इतना तो स्पष्ट है कि कोरोना वायरस आज के वैज्ञानिक युग का बेहद गंभीर एवं दुर्भाग्यपूर्ण दुष्प्रभाव है। चाहे किसी अन्य देश ने इस जैविक हथियार का प्रयोग चीन के खिलाफ किया हो या चीन दूसरे देशों के लिए खोदे जाने वाले गड्ढे में खुद गिर गया हो घायल तो मानवता हुई है। इसी मानवता को बचाने के लिए जब विश्व युद्ध के काल में जैविक हथियारों के प्रयोग से बहुत बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों को बिना किसी कसूर के अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा था, तो बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन की रूपरेखा तैयार की गई। मानवता की रक्षा के लिए भविष्य में जैविक हथियारों के प्रयोग को प्रतिबंधित करने वाला यह नियम1975 से अस्तित्व में आया। इस जैव शस्त्र अभिसमय पर 180 देशों ने हस्ताक्षर किए । इसके अनुसार इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश कभी भी किसी भी परिस्थिति में किसी भी प्रकार के जैविक हथियार का निर्माण उत्पादन या सरंक्षण नहीं करेंगे ।
लेकिन यह अभिसमय देशोंको यह अधिकार देता है कि वो अपनी रक्षा के लिए अनुसंधान कर सकते हैं दूसरे शब्दों में एक वायरस को मारने के लिए दूसरा वायरस बना सकते हैं। इसी की आड़ में अमेरिका, रूस,चीन जैसे देश जैविक हथियारों पर अनुसंधान करते हैं ।
लेकिन कोरोना वायरस के इस ताज़ा घटनाक्रम से अब यह जरूरी हो गया है कि वैज्ञानिक विज्ञान के सहारे नए अनुसंधान करते समय मानवता के प्रति अपने कर्तव्य को भी समझें और अपनी प्रतिभा एवं ज्ञान का उपयोग सम्पूर्ण सृष्टि के उत्थान के लिए करें उसके विनाश के लिए नहीं ।