खुद ही लड़ना होगा हमको : पुष्पलता सिंह

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फिर समाज की कुरीतियों पर लिखने का मन हुआ तो लेख लिखने लगी और ऐसे ही अपनी कल्पनाओं से कुछ मोती उठाकर उन्हें कविता और कहानी का रूप देने लगी । इसकी कोई शिक्षा नहीं ली, अपनी भावनाओं को और कल्पनाओं को शब्दों में बाँधती चली गई । परिवार का साथ मिला ।

शादी के बाद सबके हिस्से का समय निकालने से जो समय मिलता तो उसमे संगीत का रियाजÞ और लेखन करती, अब बच्चे बड़े हो गए हैं तो खुद को संभाल लेते हैं । औरत होने के नाते खुद को स्थापित करना आसान तो नहीं पर कोई मुश्किल भी नहीं है, ये हर औरत पर निर्भर करता है कि किससे कितनी बात करनी है और कितनी दूरी रखनी है, सभी महिला पुरुष अच्छे होते हैं हम किसी को गÞलत साबित नहीं कर सकते, जबतक हम कोई गलती न करें ।

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