आज के इस महामारी के दौर में योग के चिकित्सीय पक्ष को गंभीरता से लिया जाना चाहिए.
योग के द्वारा ही बचाव एवं इलाज पूर्णरूपेण किया जा सकता है.
इस पद्धति द्वारा मनुष्य प्रकृति से अपने आपको जोड़ता है तथा अपने अंदर निहित आत्मशक्ति को जागृत करता है.
जिसका परिणाम संपूर्ण शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं बौद्धिक स्तर पर पड़ता है.
योग के योग के जिस किसी भी पद्धति को मनुष्य अपनाएगा, चाहे वह आसन हो या प्राणायाम षट् क्रिया हो या फिर जप ध्यान। हर पद्धति द्वारा इस वैश्विक महामारी से अपना बचाव किया जा सकता है ।
इस वैश्विक महामारी के समय दो मुख्य यौगिक क्रियाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए।
वह है आसन और प्राणायाम ।
इन दोनों क्रियाओं को हर व्यक्ति आसानी से कर सकता है।
आसन और प्राणायाम द्वारा शरीर का शुद्धिकरण होता है तथा प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
मन भी प्रसन्न चित्त रहता है, जिस कारण पूरे दिन उत्साह बना रहता है जो स्वयं को प्रेरणा के अलावा दूसरे दूसरों को भी प्रेरित कर सकता है।
कुछ आसन द्वारा हमारे मेरुदंड एवं छाती प्रदेश को विकसित एवं मजबूत किया जा सकता है।
जैसे भुजंगासन, धनुरासन, पृष्टासन, पश्चिमोत्तानासन, पादहस्तासन एवं मेरू वक्रासन।
इन सभी अभ्यासों को श्वास के साथ करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार जैसे अभ्यास को भी श्वास एवं मंत्र के साथ करना चाहिए।
जिसका प्रभाव शरीर, मन और आत्मा पर पड़ता है ।
प्राणायाम मे भस्त्रिका, नाड़ी शोधन एवं भ्रामरी का अभ्यास करना चाहिए ।
यह तीनों प्राणायाम वक्ष प्रदेश, नाड़ी संस्थान एवं मस्तिष्क के लिए फायदेमंद है।
भस्त्रिका द्वारा शरीर में गर्मी उत्पन्न कर शुद्धीकरण की क्रिया संपन्न होती है । साथ ही फेफड़ों को अधिक क्रियाशील बनाया जा सकता हैं ।
नाड़ी शोधन द्वारा समस्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन को पहुंचाया जा सकता है।
भ्रामरी मन को स्थिर शांत करता है, जिससे संकल्प शक्ति को में बढ़ोतरी होती है ।
अभ्यास का अंत हमेशा ओम उच्चारण से करना चाहिए जिसका प्रभाव आसपास के वातावरण के साथ हमारे आंतरिक वातावरण पर भी पड़ता है ।